कोरोना और जुमा ! मस्जिदों में या घरों में, कहां नमाज़ अदा करेंगे मुस्लिम धर्मावलंबी?
सिलीगुड़ी, 'कोरोना' वायरस के जानलेवा संक्रमण के आतंक के मद्देनजर जन-जीवन रक्षा हेतु देशव्यापी 'लाॅक-डाउन' जारी है। हर जगह हर कोई अपने घर में ही कैद रहने को मजबूर है। आपात कार्यों के अलावा लोगों के घरों से बाहर निकलने व कहीं भी भीड़ करने पर सरकार ने पाबंदी लगा रखी है। आपात कार्यों के दौरान भी लोगों को सार्वजनिक जगहों पर एक-दूसरे के बीच 'सुरक्षित सामाजिक दूरी' यानी कम से कम एक मीटर की दूरी बनाए रखने का निर्देश है। इन निर्देशों का उल्लंघन करने वालों से पुलिस को सख्ती से निपटने का भी आदेश है। उल्लंघन करने वालों के विरुद्ध कानूनन छह महीने कैद या हजार रुपये जुर्माना या एक साथ दोनों सजा का भी प्रावधान है।
ऐसी विकट परिस्थिति में इस्लाम धर्मावलंबी मुसलमानों के समक्ष नमाज़ (प्रार्थना) अदा करने को लेकर द्वंद्व की स्थिति उत्पन्न हो गई है। इस्लाम धर्म की मान्यता एवं विधि अनुसार हर मुसलमान को हर दिन तड़के सुबह से लेकर रात तक कुछ समय-अंतराल पर कुल पांच बार नमाज़ अदा करना फ़र्ज़ (अनिवार्य) है। उसमें भी शुक्रवार यानी जुमा के दिन दोपहर के समय जुमा की सामूहिक नमाज़ का मुसलमानों के बीच बड़ा महत्व है। जुमा की नमाज़ सामूहिक रूप में मस्जिदों में ही अदा की जाती है। मगर, वर्तमान समय में 'कोरोना' वायरस के जानलेवा संक्रमण का ख़ौफ है। कहीं भी किसी भी जगह लोगों के समूह में एकत्रित होने पर सरकारी पाबंदी भी है। ऊपर से 'इंडिया लाॅक-डाउन' के बाद कल पहला जुमा है। इसे लेकर मुसलमान बड़े द्वंद्व में हैं कि आखिर वे करें तो करें क्या?
इस बारे में इस्लाम धर्म के प्रख्यात प्रकांड विद्वान, धर्मगुरु, इस्लामी फ़िक़्ह एकेडमी (इंडिया) के महासचिव व ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लाॅ बोर्ड के संस्थापक सदस्य हज़रत मौलाना खालिद सैफुल्लाह रहमानी ने मुसलमानों का मार्गदर्शन किया है। हैदराबाद के उर्दू 'मिल्लत टाइम्ज़' की रिपोर्ट के मुताबिक उन्होंने कहा है कि लोग अपने-अपने घरों पर ही नमाज़ अदा करें। हां, कुछेक लोग मस्जिद में भी ज़रूर नमाज़ अदा कर लें ताकि जुमा जैसे महत्वपूर्ण नमाज़ के दिन मस्जिद वीरान भी न होने पाए और मस्जिद का महत्व भी बरकरार रहे।
हज़रत मौलाना खालिद सैफुल्लाह रहमानी का कहना है कि इस्लाम में नमाज़ का बहुत महत्व है। पैगंबर हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने नमाज़ को अपनी आंखों की ठंडक कहा है। उसमें भी जुमा की नमाज़ का विशेष महत्व है जो लोगों के बड़े समूह द्वारा सामूहिक रूप में अदा की जाती है। पैगंबर हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने कहा है कि जिसने तीन बार जुमा की नमाज़ बिना किसी कठिनाई व बीमारी के छोड़ दी तो अल्लाह तआला उसके दिल पर मुहर लगा देंगे यानी उससे पुण्य के अवसर छीन लिए जाएंगे। जुमा के महत्व का इसी से अंदाजा किया जा सकता है। मगर, पैगंबर हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की इसी बात पर गौर करें तो यह भी साफ़ है कि अगर कोई व्यक्ति किसी कठिनाई विशेष कर बीमारी की वजह से जुमा की नमाज़ अदा न कर सके तो कोई बाधा नहीं है।
वर्तमान समय में कोरोना वायरस का ख़तरा बड़ा ख़तरा है। आमतौर पर कोई बीमारी जिस व्यक्ति को होती है उससे उसी का जीवन प्रभावित होता है लेकिन इस (कोरोना वायरस) से गंभीर सामाजिक क्षति का संकट है और इस्लाम के कानून के अनुसार अपने आप को व औरों को क्षति यानी नुकसान से बचाना वाजिब है। वर्तमान हालात में, विशेषज्ञों के अनुसार, जुमा के लिए लोगों का इकट्ठा होना बेहद नुकसानदेह साबित हो सकता है। सो, जब तक हालात सामान्य नहीं हो जाते तब तक बेहतर है कि लोग अपने-अपने घरों पर ही 'ज़ुहर' (जुमा का दिन छोड़ कर आम दिनों में हर रोज दोपहर के थोड़ी देर बाद अदा की जाने वाली फ़र्ज़ नमाज़) की नमाज़ अदा किया करें जो कि इस्लामी कानून के तहत भी जुमा के दिन जुमा की नमाज़ का विकल्प है।
मस्जिद में या किसी और जगह जुमा की नमाज़ के लिए मुहल्ले के लोगों का इकट्ठा होना मुनासिब नहीं है। हां, मस्जिद में कुछेक व्यक्ति ज़रूर नमाज़ अदा कर लें ताकि जुमा जैसे महत्वपूर्ण नमाज़ के दिन मस्जिद भी वीरान न होने पाए और मस्जिद का महत्व भी बरकरार रह जाए। उसमें भी एकदम छोटा खुतबा दिया जाए व संक्षिप्त रूप में ही नमाज़ अदा की जाए। समूह में इकट्ठा नहीं होना इसलिए भी ज़रूरी है कि सरकार ने भी इस पर पाबंदी लगा रखी है।
उन्होंने तमाम मुसलमान भाइयों से अपील की है कि वे वर्तमान समय की नज़ाकत को समझें। दूर दृष्टि का सबूत दें। भावनाओं यानी जज़्बात में बहने के बजाय मानव जीवन रक्षा जैसे इस्लामी मूल्यों का ख्याल रखें।
वहीं, उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ में मुबारकपुर स्थित अल-जामिअतुल अशरफिया के इफ्ता (फतवा से संबंधित) विभाग के अध्यक्ष मोहम्मद निजामुद्दीन रिजवी ने भी इस मामले में फतवा दिया है। वह यह कि दैनिक व जुमा की सामूहिक नमाज़ अदा करने हेतु लोग पुलिस व प्रशासन के समक्ष आवेदन दे कर अनुमति मांगें। अनुमति मिलती है तभी सामूहिक नमाज़ अदा करें। अन्यथा, जितने लोगों को अनुमति है उतने लोग ही मस्जिद में दैनिक व जुमा की नमाज़
नमाज़ अदा करें। बाकी लोग अपने-अपने घरों में जुमा के बदले 'ज़ुहर' की नमाज़ तन्हा-तन्हा पढ़ें। दैनिक नमाज़ें समूह में पढ़ें यदि इमाम उपलब्ध हों तो वरना अकेले-अकेले भी पढ़ सकते हैं। कठिनाइयों व बेबसी के समय जुमा का वाजिब होना स्थगित हो जाता है और जुमा के बदले ज़ुहर की इजाजत होती है। मस्जिदों में जुमा की नमाज़ अदा हो जाने के बाद ही, लोग घरों पर जुमा के बदले ज़ुहर की नमाज़ पढ़ें, पहले हर्गिज न पढ़ें। जुमा की नमाज़ के लिए कुछ अनिवार्यताएं ऐसी होती हैं जो घरों व बिल्डिंग में पूरी नहीं हो सकतीं हैं। इसीलिए घरों पर जुमा नहीं बल्कि जुमा के बदले 'ज़ुहर' की ही नमाज़ पढ़ें। जो लोग सर्दी, खांसी, सांस में तकलीफ आदि से बीमार हैं वे बाहर मस्जिद में न जाएं। घर पर ही नमाज़ अदा किया करें। उन्होंने मस्जिदों में नियमित रूप में अज़ान होती रहने व चंद लोगों द्वारा ही सही दैनिक नमाज़ों को भी अदा कर मस्जिदों को आबाद रखने को भी कहा है।
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